अगर 2027 के पंजाब विधानसभा चुनावों पर ध्यान दिया जाए तो तस्वीर धीरे-धीरे साफ होती नज़र आ रही है। आज कांग्रेस खुद को राजनीति की अगली पंक्ति की ताक़त साबित करने की कोशिश कर रही है, मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर भी चर्चा चल रही है। लेकिन हालात हरियाणा से अलग नहीं हैं—जहाँ आपसी खींचतान और गुटबाज़ी ने कांग्रेस को हमेशा पीछे धकेला।
असल कारण ये हैं:
1. कांग्रेस का ऐतिहासिक दोष – पंजाब और पंजाबी का सबसे बड़ा नुकसान कांग्रेस ने किया। चाहे देश के विभाजन के समय लाखों पंजाबियों की कुर्बानी हो, चाहे सिख गुरुद्वारे पाकिस्तान में रह जाना, चंडीगढ़ का हक़ न मिलना, अकाल तख़्त का गिराया जाना या सिखों का नरसंहार—ये सब लोगों के मन में आज भी ताज़ा ज़ख़्म हैं। कांग्रेस को अब पंजाबी माफ़ करने को तैयार नहीं।
2. अकाली दल की कमजोरी – धार्मिक और प्रशासनिक मसले हल न होने के कारण अकाली दल अपनी खोई हुई जड़ें नहीं पा सका।
3. आप का पतन – बार-बार के झूठे वादे, भ्रष्टाचार, नशों की सरपरस्ती और बाढ़ों से निपटने में अयोग्यता ने पंजाबियों का भरोसा तोड़ दिया है। लोग इस धोखे को दशकों तक याद रखेंगे।
4. भाजपा के लिए चुनौती और अवसर – भले ही केंद्र में सत्ता में होने के कारण भाजपा की पृष्ठभूमि मज़बूत है, लेकिन पंजाब में पुरानी 23 सीटों वाली नेतृत्व क्षमता लोगों को प्रभावित नहीं कर सकी। लोगों के मन में नई उम्मीद पैदा करने के लिए सर्जिकल ऑपरेशन जैसी बदलाव की ज़रूरत है।
अगर यह बदलाव समय पर न हुआ तो फिर हालात वैसे ही होंगे जैसे कहावत है—
“मर्ज़ बढ़ती गई ज्यों-ज्यों दवा की।”
✍️ एस. आर. लद्धड़ (पूर्व IAS) की कलम से
