चंडीगढ़, पंजाब: हाल ही में पंजाब में प्रवासियों को लेकर एक बड़ी बहस खड़ी हो गई है. कुछ लोग प्रवासियों को राज्य से निकालने के पक्ष में हैं, जबकि कुछ का मानना है कि प्रवासियों को एक समान नहीं देखा जाना चाहिए और राज्य की अर्थव्यवस्था के लिए उनकी भूमिका महत्वपूर्ण है. यह विवाद तब और बढ़ गया जब 25 से ज़्यादा गाँवों ने प्रस्ताव पास किए, जिसमें प्रवासियों के सरकारी दस्तावेज़, जैसे आधार कार्ड और वोटर कार्ड, न बनाने का फ़ैसला लिया गया है.
सामाजिक और राजनीतिक मतभेद
इस मुद्दे पर समाजसेवी संस्थाओं के भी अलग-अलग मत हैं. कुछ लोग हिमाचल प्रदेश, राजस्थान और उत्तराखंड जैसे राज्यों का हवाला देते हुए कह रहे हैं कि किसी भी प्रवासी को पंजाब में ज़मीन खरीदने का अधिकार नहीं मिलना चाहिए. उनका तर्क है कि प्रवासी यहाँ काम कर सकते हैं, लेकिन उन्हें मूल निवासी नहीं बनना चाहिए.
वहीं, दूसरी तरफ़ कुछ समाजसेवियों का कहना है कि अगर प्रवासियों के परिवार यहाँ सालों से रह रहे हैं और मेहनत-मज़दूरी कर रहे हैं, तो इसमें कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए. उनका मानना है कि इन लोगों की वजह से ही पंजाब की कृषि और उद्योग जैसे क्षेत्रों का विकास हुआ है.
मुख्यमंत्री का स्पष्ट रुख
इस पूरे मामले पर पंजाब के मुख्यमंत्री, भगवंत मान ने कड़ा रुख अपनाया है. उन्होंने स्पष्ट किया है कि भारत का संविधान किसी को भी राज्य से निकालने का अधिकार नहीं देता है. उन्होंने चेतावनी दी है कि जो भी ऐसा करेगा, उसके ख़िलाफ़ सख़्त कार्रवाई की जाएगी. मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि अगर कोई अमन-क़ानून की स्थिति को अपने हाथ में लेता है, तो उसे बख़्शा नहीं जाएगा, चाहे वह कोई भी हो.
मुख्यमंत्री ने इस मामले को एक व्यापक दृष्टिकोण से भी देखा. उन्होंने कहा कि बहुत से पंजाबी काम करने और रहने के लिए अन्य राज्यों या विदेशों में गए हुए हैं. अगर हम यहाँ से प्रवासियों को जाने के लिए कहेंगे, तो अन्य जगहों पर भी पंजाबियों के प्रति ऐसी ही सोच बन सकती है.
होशियारपुर की घटना और आम सहमति
इस पूरे विवाद के बावजूद, सभी लोग होशियारपुर में हुई घटना को लेकर एकमत हैं. सभी का कहना है कि दोषी को कड़ी से कड़ी सज़ा मिलनी चाहिए ताकि भविष्य में ऐसी कोई भी घटना दोबारा न हो. यह घटना इस बहस को और भी संवेदनशील बना देती है, और सभी मानते हैं कि हिंसा या अपराध किसी भी स्थिति में बर्दाश्त नहीं किया जा सकता.
इस प्रकार, पंजाब में प्रवासी मज़दूरों का मुद्दा केवल एक सामाजिक मुद्दा नहीं, बल्कि एक आर्थिक और राजनीतिक मुद्दा भी बन गया है, जिस पर आगे भी बहस जारी रहने की संभावना है.
