दो वयस्कों के बीच सहमति के साथ बने शारीरिक संबंध को दुष्कर्म नहीं कहा जा सकता यदि विवाह नहीं हो पता ,यह कहना है पंजाब हरियाणा हाई कोर्ट का जिसमे की एक मामले के बीच फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने FIR को रद्द कर दिया ।वहीं स्पष्ट किया है कि विवाह का झूठा वादा होने पर यह दिखाना होगा कि आरोपित की शादी करने की मंशा नहीं थी।
इस मामले में शिकायतकर्ता महिला और युवक की सगाई हो चुकी थी दोनों परिवारों के बीच सगाई की रस्म भी संपन्न हो चुकी थी ।यहां तक तय हो चुका था की शादी 2024 नवंबर में होगी लेकिन दोनों परिवारों के बीच एक समय पर मतभेद इस तरह से उभरे की विवाह नहीं हो पाया ।इसके बाद महिला ने युवक पर झूठे बहाने से शारीरिक संबंध बनाने का आरोप लगाते हुए दुष्कर्म का मामला दर्ज करवाया था ।जिसमें हाई कोर्ट ने कहा कि रिकॉर्ड देखने से स्पष्ट होता है कि दोनों पढ़े लिखे हैं और वयस्क हैं जिसके चलते दोनों के बीच संबंध सहमति से बने थे और विवाह नहीं होने के कारण परिवारों के बीच मतभेद शुरू हो गए ।हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का भी हवाला देते हुए दोहराया कि केवल शादी का वादा पूरा न होना दुष्कर्म का मामला नहीं बनता है। जब तक की यह साबित ना हो जाए कि आरोपी की नियत शुरू से ही धोखाधड़ी करने की थी।
पंजाब हरियाणा हाई कोर्ट के जस्टिस कीर्ति सिंह की एकलपीठ ने इस मामले में फैसला सुनाते हुए कहा कि अगर शादी का झूठा वादा कर संबंध बनाए गए हो ।तो उसमें यह दिखाना जरूरी है ,कि आरोपित शुरू से ही शादी करने की मंशा नहीं रखता था और सिर्फ संबंध बनाने के लिए झूठा वादा कर रहा था।
